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Sunday, 13 October 2024

सृष्टि प्रदीपन हेतु धरा पर

 सृष्टि प्रदीपन हेतु धरा पर


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सृष्टि प्रदीपन हेतु धरा पर

युग-युग के अवतारी जय।

मूल-नियंता, सर्व दयामय

ईश, परम अविकारी जय।।

मंगलकारक, विमल प्रबोधन

अविनाशी, भयहारी जय।

श्री-नारायण ईश परायण

वासुदेव, गिरिधारी जय।।


शाश्वत परमेश्वर नमनऽखिलेश्वर, परमात्मन ऋषिकेश।

पयनिधि सुर-शयनं, सुखकर अयनं, वासुदेव करुणेश।।

पद-पूज्य गिरीशं, नमत हरीशं, अच्युत शेष-अशेष।

जय आनंदकुंजं विमलनिकुंजं, नारायण गरुणेश।।

लक्ष्मी संग वंदन अलखनिरंजन, उद्भव स्वतः सुजान।

जय त्रिभुवन स्वामी, अंतर्यामी, मायापति भगवान।।


तप हेतु भजं त्वं ऋषि-मुनि संतं, गूँजत दस दिक नाम।

परमारथवादी अति अनुरागी, मंजुल मूरति धाम।।

निर्मित निज माया, सगुण सकाया, निर्गुण भगति विराम।

जड़-चेतनवासी प्रभु दुखनाशी, भजौ तुभ्य अविराम।।

सीता संग वंदन दशरथनंदन, जय श्री सीताराम।

जय परम पुनीतं ज्ञानाधारं, जगदीश्वर श्रीराम।।


श्रीयुत योगेश्वर हृदय मठेश्वर, द्वापर तारनहार।

गीता-श्रुति दर्पण, कर जग अर्पण, विश्वरूप साकार।।

वर्णित श्रुति वर्णम्, पुनः अवर्णम्, श्यामल स्नेहागार।

लघुरूपऽगम्यं, वृहद सुरम्यं, निर्गुण निःआकार।।

राधारमणीयं, सर्वतुरीयं, मंगलमय सरकार।

जय कृष्ण भजं त्वं, मायाकंतं, स्वयंमेव ओंकार।।

...“निश्छल”

2 comments:

  1. बहुत सुंदर,पावन,पवित्र प्रार्थना।
    पुनः स्वागत है आपका।
    सादर।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार १५ अक्टूबर २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. बहुत ही खूबसूरत सृजन!

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