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Thursday 13 June 2024

जय विंध्याचल वाली

जय विंध्याचल वाली

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जिसके दर पर ध्यावें मुनि गण, जो वर देने वाली;
शमित करो माँ जग की पीड़ा, जय दुर्गे, माँ काली।

सृजित किया जब सृष्टि विधाता
तुमको ही तब ध्यान कर
पालन करते हरि तृण-तृण का
अनुमति तेरी मानकर,
हरते हैं शिव रौद्ररूप में, कुदरत तब गतिवाली;
शमित करो माँ जग की पीड़ा, जय अंबे, माँ काली।

स्वर्ग-नर्क के केंद्र टूटते
ध्यान धरें सुख त्यागकर
जन्म-मरण के भव बंधन पर
मातु सुदर्शन वार कर,
ज्ञानीजन को ज्ञान रूप में, दर्शन देनेवाली;
शमित करो माँ जग की पीड़ा, जय विमला, माँ काली।

शेरोंवाली की महिमा तो
परिमित नहीं, अनंत है
मातु दरस से आह्लादित जो
भक्त बड़ा वह संत है,
ध्यावौं तुझको हर पल माता, वंदन खप्परवाली;
शमित करो माँ जग की पीड़ा, जय लक्ष्मी, माँ काली।

कलि की कुत्सित छाया छायी
तीनों भुवन में गहरी
मातु हरो यह विपद बड़ी है
चिह्नित गरल है ठहरी,
क्षीण करो माँ खड्ग धार से, शिव आयुध कर वाली;
शमित करो माँ जग की पीड़ा, रौद्रमुखी, माँ काली।

अविरत विनती करता हूँ मैं
सकल कामना त्यागकर
मनोकामना पूरी कर माँ
जग का अब कल्याण कर,
कलिमल अवगुण फैल चुके हैं, दुर्दिन बन, जंजाली;
शमित करो माँ जग की पीड़ा, जय विंध्याचल वाली।
...“निश्छल”
(रचनाकाल-२०१८)

शिव! शशि को धारण करके

शिव! शशि को धारण करके
✒️
शिव! शशि को धारण करके, सौभाग्य पुनः रच देना
हर दुखियारे का जीवन, प्रभु, मंगलमय कर देना।

वैभव के दाता, हे शिव!
हर दंश-दमन के कारक,
भक्तों के आश्रयदाता
हर! तुम ही कष्ट निवारक।
जीवन की आभा धूमिल, सत्संग-विरत हो बैठी
अनुगत अपने शशिशेखर, वैभवशाली कर देना।
शिव! शशि को धारण करके...

मतभेद समय का सत्वर
हम हैं निरीह से प्राणी,
अमरत्व अमिय का देकर
कर देना पावन वाणी।
कैसी अनीतियों का युग, चहुँ ओर अनिष्ट-विचारी
है पतित हुई मानवता, डमरू की ध्वनि कर देना।
शिव! शशि को धारण करके...

हे आदिदेव, संहारक
हे वरदहस्त, प्रतिपालक,
आशीष अभय का देते
भोले! कुरीति के घालक।
हम अर्थ लगाकर मोहित, सांसारिक संवेदन में
अर्थहीन मंतव्यों को, अति दूर स्वयं कर देना।
शिव! शशि को धारण करके...

शिव! मौन रूप में बैठे
साधक बन शैल शिखा पर,
शोभित होती हैं गंगा
मस्तक पर सजे निशाकर।
इस मूढ़ हृदय की सारी, विह्वलता को हर लेना
हर दुखियारे का जीवन, प्रभु, मंगलमय कर देना।
शिव! शशि को धारण करके...
...“निश्छल”
(रचनाकाल-२०१९)