तत्सम-तद्भव की अलख जगा, पाला जिनने कविकर्मों को; उन माननीय कविराजों का, वंदन है शत-शत बार यहाँ।।
युग-युग के अवतारी जय।
मूल-नियंता, सर्व दयामय
ईश, परम अविकारी जय।।
मंगलकारक, विमल प्रबोधन
अविनाशी, भयहारी जय।
श्री-नारायण ईश परायण
वासुदेव, गिरिधारी जय।।
...“निश्छल”
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