शिव! शशि को धारण करके
शिव! शशि को धारण करके, सौभाग्य पुनः रच देना
हर दुखियारे का जीवन, प्रभु, मंगलमय कर देना।
वैभव के दाता, हे शिव!
हर दंश-दमन के कारक,
भक्तों के आश्रयदाता
हर! तुम ही कष्ट निवारक।
जीवन की आभा धूमिल, सत्संग-विरत हो बैठी
अनुगत अपने शशिशेखर, वैभवशाली कर देना।
शिव! शशि को धारण करके...
मतभेद समय का सत्वर
हम हैं निरीह से प्राणी,
अमरत्व अमिय का देकर
कर देना पावन वाणी।
कैसी अनीतियों का युग, चहुँ ओर अनिष्ट-विचारी
है पतित हुई मानवता, डमरू की ध्वनि कर देना।
शिव! शशि को धारण करके...
हे आदिदेव, संहारक
हे वरदहस्त, प्रतिपालक,
आशीष अभय का देते
भोले! कुरीति के घालक।
हम अर्थ लगाकर मोहित, सांसारिक संवेदन में
अर्थहीन मंतव्यों को, अति दूर स्वयं कर देना।
शिव! शशि को धारण करके...
शिव! मौन रूप में बैठे
साधक बन शैल शिखा पर,
शोभित होती हैं गंगा
मस्तक पर सजे निशाकर।
इस मूढ़ हृदय की सारी, विह्वलता को हर लेना
हर दुखियारे का जीवन, प्रभु, मंगलमय कर देना।
शिव! शशि को धारण करके...
...“निश्छल”
(रचनाकाल-२०१९)
महादेव का आशीष मिले,शुभ हो,मंगलमय हो।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रार्थना।
साहित्य संग्रह के नवीन यात्रा में आपका स्वागत है अमित जी।
अशेष शुभकामनाएँ।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १४ जून २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सादर अभिनंदन आ० श्वेता जी। आपके सहयोग के लिए आभारी हूँ🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
Deleteवैभव के दाता, हे शिव!
ReplyDeleteहर दंश-दमन के कारक,
भक्तों के आश्रयदाता
हर! तुम ही कष्ट निवारक।
सुंदर रचना
आभार
सादर..
सधन्यवाद नमन मैम🙏🏻
Deleteवाह
ReplyDeleteसर, सादर नमन🙏🏻
Deleteबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना
ReplyDeleteसर धन्यवाद।🙏🏻
Deleteसुंदर भक्तिमय रचना
ReplyDeleteमैम नमन🙏🏻🙏🏻
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteसर सादर आभार🙏🏻
Deleteवाह! बहुत सुन्दर सृजन!
ReplyDeleteसादर नमन मैम🙏🏻
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